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रवीन्द्र भवन में भारतीय मातृभाषा अनुष्ठान आरंभ

राष्ट्र के निर्माण में भारतीय भाषाओं के योगदान पर हुई चर्चा

भोपाल: 14 सितंबर 2025

मध्‍यप्रदेश ही वह राज्य है जहाँ से इस मिथक को तोड़ा गया कि चिकित्सा और तकनीक जैसे विषयों की पढ़ाई ‘हिंदी’ में नहीं हो सकती। मध्‍यप्रदेश में विश्‍व को ये दिखाया कि चिकित्सा और तकनीक शिक्षा के क्षेत्र में हिन्‍दी भाषा से अध्‍ययन संभव है। देश में नई शिक्षा नीति लागू की गई है। यह शिक्षा नीति ज्ञान आधारित शिक्षा है। ये बात माननीय उच्च शिक्षा मंत्री श्री इंदरसिंह परमार ने रवीन्द्र भवन के अंजनी सभागार में दो दिवसीय भारतीय मातृभाषा अनुष्ठान का शुभारंभ अवसर पर कही। संस्‍कृति संचालनालय, वीर भारत न्यास और माधवराव सप्रे संग्रहालय के साझा आयोजन के शुभारंभ कार्यक्रम में प्रदेश के माननीय उच्च शिक्षा मंत्री श्री इंदरसिंह परमार मुख्‍य अतिथि थे। शुभारंभ सत्र की अध्यक्षता गुजरात साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री विष्णु पंडया ने की। शुभारंभ सत्र के तत्काल बाद विभिन्न भारतीय भाषाओं और हिंदी के बीच अंतरसंबंध पर विमर्श हुआ तथा दूसरे सत्र में ‘भारतीय भाषा एवं प्रौद्योगिकी’ विषय पर व्याख्यान हुआ।

अनुष्‍ठान को संबोधित करते परमार ने कहा कि भारतीय दर्शन श्रेष्ठ दर्शन है लेकिन पिछले कुछ सालों में इस सच को छिपाया गया। अब समय आ गया है कि नई शिक्षा नीति के माध्यम से हम इस दर्शन से बच्चों को परिचित करायेंगे। नई पीढ़ी जब इस दर्शन को जान जाएगी तो इसमें कुछ संशय नहीं कि भारत अपना पुराना गौरव पुन: प्राप्त कर लेगा।

उन्‍होंने कहा कि भाषाएँ आपस में एक दूसरे को जोड़ती हैं यह संदेश मध्यप्रदेश की धरती से देश ही नहीं दुनिया में इस अनुष्ठान के माध्यम से जायेगा। उन्होंने जानकारी दी कि मध्यप्रदेश के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों में भारतीय भाषाएँ पढ़ाने की व्यवस्था की जाएगी। इसमें से किसी एक भारतीय भाषा को पढ़ना विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य होगा। इसके पीछे सरकार की मंशा यह है कि इससे भाषायी सौहाद्र तो पैदा हो ही साथ ही हमारे प्रदेश के विद्यार्थी जब दूसरे प्रदेशों में जायें तो उस प्रदेश की भाषा के बल पर आसानी से अपना कौशल विकसित कर लें। आने वाले समय में यह व्यवस्था निजि विवि में भी किये जाने का विचार है।

सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है भाषा : पद्मश्री विष्णु पण्डया

अध्यक्षीय उद्बोधन में पद्मश्री विष्णु पण्डया ने कहा कि भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है, यह एक-दूसरे से जुड़ने का सशक्त माध्यम है। भाषाओं को राष्ट्र के साथ जोड़ना होगा तभी एकात्मकता का भाव पैदा होगा। जब एक स्थान के भाषा-भाषी दूसरे स्थान की यात्रा करते हैं तो वे अपने साथ वहाँ की भाषा भी लेकर जाते हैं। इसका सबसे सशक्त उदाहरण मीराबाई हैं। वे राजस्थान से चलकर द्वारका तक पहुँची। उनकी रचनाओं का अवलोकन करें तो उसमें इस बीच पड़ने वाली भाषाओं के शब्द सहजता से पाये जाते हैं। उनकी पूरी यात्रा भाषाओं के समन्वय का ही प्रमाण हैं।

हमारी भाषाओं और बोलियों की शक्ति को पहचानना होगी: श्रीराम तिवारी

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए माननीय मुख्‍यमंत्रीजी के संस्‍कृति सलाहकार व वीर भारत न्यास के न्यासी सचिव श्रीराम तिवारी ने कहा कि आज भारत में करीब सात हजार से ज्यादा भाषाएँ और बोलियाँ हैं, इनकी संख्या तेजी से विलुप्त होती जा रही है। यह भाषाएँ और बोलियाँ किस तरह से पुर्नजीवित हों यही इस मातृभषा अनुष्ठान को उद्देश्‍य है। साथ ही इस आयोजन के पीछे यह मंशा भी है कि हम सभी हमारी भाषाओं और बोलियों की शक्ति को पहचानें और इसे समृद्ध करने में आगे आयें। श्री तिवारी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम हमारी बोलियों और भाषाओं की शक्ति ग्रहण कर ही विश्व गुरु बन सकते हैं।

इस अवसर पर संस्कृति संचालक एनपी नामदेव ने कहा कि प्रदेश सरकार के प्रयास हैं कि हिंदी का महत्व देश-दुनिया में स्थापित हो। इस अनुष्ठान में आने वाले सत्रों में ऐसे ही विषयों पर चर्चा होगी।

सत्र में विशेष रूप से उपस्थित हिंदी विद्वान डॉ. सूर्यप्रकाश दीक्षित ने कहा कि भारतीय भाषाओं के बीच सौहाद्र्र का भाव जगाना होगा। इसमें इस तरह के आयोजन कारगर हो सकते हैं।

सत्र के आरंभ में सप्रे संग्रहालय के संस्थापक निदेशक पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन की रूपरेखा रखते हुए कहा कि अपनी भाषा पर अभिमान सब भाषाओं का सम्मान है इस उद्घोष के साथ यह अनुष्ठान हो रहा है। इसका आने वाले समय में देश भर में विस्तार किया जाएगा।

कन्नड़, मलयालम, तेलुगु, बांग्ला और तमिल भाषाएँ तथा हिंदी के अंतरसंबंध पर चर्चा

इसके तत्काल बाद हुए विमर्श के सत्र में कन्नड़, मलयालम, तेलुगु, बांग्ला और तमिल भाषाएँ तथा हिंदी के अंतरसंबंध पर चर्चा हुई। चर्चा में डॉ. उषारानी राव कन्नड़, डॉ. के.वनजा मलयाली, डॉ. पी. मणिक्यांबा, तमिल तथा कृपाशंकर चौबे ने बांग्ला भाषा और हिंदी भाषा के बीच समानता पर वक्तव्य दिये। सभी वक्ताओं की राय थी कि हिंदी और अन्य भाषाओं के शब्दों में बहुत हद तक समानता है। इन सबको जोड़ने में अनुवाद महती भूमिका निभा सकता है। इसके पहले पूर्व रंग में छात्र-छात्राओं के समूह द्वारा कविता यात्रा की सांगीतिक प्रस्तुति दी गई। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामवल्लभ आचार्य द्वारा रचित हिंदी गीत की प्रस्तुति भी हुई। अंत में पूरे सत्र का समाहार साहित्यकार डॉ. प्रभुदयाल मिश्र ने दिया। इस सत्र का संचालन पत्रकार अजय बोकिल ने किया।

प्रदर्शनी का शुभारंभ

कार्यक्रम स्थल पर भाषा और भारत का वैभव झलकाती प्रदर्शनियाँ भी संजोई गईं। जिसमें वीर भारत न्यास द्वारा तैयार की गयी भारतीय भाषा आलोक- कालजयी साहित्यकारों की छवियाँ, स्वराज संस्थान संचालनालय की कलम के सिपाही, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की सदी साक्षी है प्रदर्शनियाँ शामिल हैं।

भाषा की सहयोगी हैं विज्ञान और तकनीक

दूसरे सत्र में भारतीय भाषा एवं प्रौद्योगिकी विषय पर आचार्य डॉ. शिवशंकर मिश्र की अध्यक्षता में वक्तव्य हुए। इसमें हिंदी एवं प्रौद्योगिकी विषय पर टैगोर विवि के कुलपति डॉ. संतोष चौबे ने कहा कि यह भ्रम फैलाये गये कि हिंदी में तकनीक के क्षेत्र में काम नहीं हो सकता, लेकिन ऐसा नहीं बल्कि विज्ञान और तकनीक भाषा की सहयोगी हैं। नाटक और सिनेमा की भाषा पर अभिनेता राजीव वर्मा ने कहा कि नाटक और सिनेमा की भाषा दैहिक ही है। एक अभिनेता अपने अभिनय से ही बहुत कुछ कह जाता है। नृत्य और संगीत की भाषा पर कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने सारगर्भित और प्रभावी उद्बोधन दिया। जनजातीय एवं घुमंतु भाषा-संचार पर लोककला मर्मज्ञ डॉ. धर्मेन्द्र पारे ने वक्तव्य दिया। इस सत्र का संचालन डॉ. जवाहर कर्नावट ने किया।

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