जहरीली दवा से 26 बच्चों की मौत पर दिग्विजय सिंह का हमला, कहा- यह हत्या से कम नहीं, CBI जांच की मांग

भोपाल: 25 अक्टूबर 2025
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शनिवार को भोपाल में पत्रकार वार्ता कर मध्यप्रदेश में जहरीली कफ सिरप कोल्ड्रिफ से हुई 26 मासूम बच्चों की मौत के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह हादसा सिर्फ एक दवा की गड़बड़ी नहीं, बल्कि नकली दवाओं के संगठित कारोबार और सरकारी मिलीभगत का परिणाम है। दिग्विजय सिंह ने कहा कि कफ सिरप में डाय-एथिलीन ग्लाइकोल (DEG) की मात्रा 48.6 प्रतिशत पाई गई, जबकि स्वीकृत सीमा केवल 0.1 प्रतिशत है- यानी 486 गुना ज्यादा जहर। यह मानव जीवन के साथ खुला खिलवाड़ है, यह हादसा नहीं, हत्या है।
CBI जांच और कठोर सजा की मांग
उन्होंने कहा कि इस पूरे प्रकरण की CBI से जांच कराई जाए और दोषी अधिकारियों, निर्माताओं व नियामकों पर हत्या सदृश अपराध (भारतीय न्याय संहिता की धारा 102) के तहत मुकदमा दर्ज हो।साथ ही पीड़ित परिवारों को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की। यह सिर्फ छिंदवाड़ा के 26 बच्चों की नहीं, पूरे देश के भविष्य की लड़ाई है। अगर अब भी सरकार नहीं जागी तो जनता का दवा व्यवस्था से विश्वास खत्म हो जाएगा।
मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को जवाब देना होगा
सिंह ने आरोप लगाया कि राज्य स्वास्थ्य समिति, जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और सह-अध्यक्ष स्वास्थ्य मंत्री हैं, ने जन-स्वास्थ्य की जिम्मेदारी पूरी तरह निभाने में असफलता दिखाई। जब राज्य स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री हैं, तो 26 बच्चों की मौत पर जवाबदेही कौन तय करेगा? उन्होंने कहा कि जहरीली दवा प्राइवेट डॉक्टरों के पर्चों पर खुले बाजार में बेची जा रही थी, लेकिन सरकार ने इसकी रोकथाम नहीं की।
केंद्र सरकार और भाजपा पर गंभीर आरोप
दिग्विजय सिंह ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और केंद्र सरकार से भी कई सवाल किए। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने फार्मा कंपनियों से 945 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर जन विश्वास अधिनियम, 2023 में बदलाव किया, जिससे नकली दवाएं बनाने और बेचने वालों के लिए जेल की सजा हटा दी गई और सिर्फ जुर्माने का प्रावधान रह गया। कंपनियों ने चंदा दो, धंधा लो का खेल खेला, और सरकार ने कानून बदलकर अपराधियों को छूट दे दी। दिग्विजय सिंह ने सवाल उठाया कि जब गाम्बिया (2022) और उज्बेकिस्तान (2023) में भारतीय दवाओं से बच्चों की मौत हो चुकी थी, तब भी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने क्यों नहीं सीखा?




