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बार-बार बुखार और खाँसी? ये हो सकता है मेलिओइडोसिस

भोपाल: 16 सितंबर 2025

मेलिओइडोसिस क्या है?

1. यह एक गंभीर जीवाणु संक्रमण है, जो अक्सर मिट्टी और गंदे पानी से फैलता है।

2. लक्षण साधारण बुखार, खाँसी या फोड़े जैसे दिख सकते हैं, लेकिन यह शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकता है।

3. समय पर पहचान और सही इलाज मिलने पर मरीज पूरी तरह ठीक हो सकता है।

रोचक मामला: मेलिओइडोसिस का सही समय पर पता

भोपाल के पास रहने वाले 45 वर्षीय किसान को कई महीनों से बार-बार बुखार, खाँसी और सीने में दर्द की शिकायत थी। स्थानीय इलाज लेने के बावजूद हालत सुधर नहीं रही थी। डॉक्टरों को पहले लगा कि यह टीबी (क्षय रोग) है, और महीनों तक दवाइयाँ भी दी गईं—लेकिन कोई असर नहीं हुआ।

मरीज को आखिरकार एम्स भोपाल रेफर किया गया। वहाँ माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने विशेष जाँच की और पाया कि यह टीबी नहीं, बल्कि मेलिओइडोसिस है। सही दवाइयाँ शुरू होते ही मरीज की हालत जल्दी सुधर गई और वह कुछ ही हफ्तों में ठीक हो गया।

आम लोगों के लिए संदेश : अगर लंबे समय से बुखार, फोड़े या फेफड़ों की तकलीफ़ हो और साधारण इलाज से ठीक न हो रहा हो, तो डॉक्टर से मिलें और मेलिओइडोसिस की जाँच ज़रूर कराएँ।

एम्स भोपाल ने मेलीओडोसिस रोग की प्रयोगशाला पहचान पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य मध्य प्रदेश में इस उभरते संक्रामक रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। यह इस श्रृंखला का चौथा प्रशिक्षण था, जो स्वास्थ्यकर्मियों और माइक्रोबायोलॉजिस्ट को समय पर पहचान और उपचार के लिए तैयार करने की संस्थान की निरंतर कोशिशों को दर्शाता है। मेलीओडोसिस एक गंभीर रोग है, जो बर्कहोल्डेरिया स्यूडोमैलीआई नामक बैक्टीरिया से होता है। यह बैक्टीरिया मिट्टी में पाया जाता है, खासकर धान के खेतों में। संक्रमित मिट्टी या पानी के संपर्क में आने से यह मनुष्यों में फैल सकता है। यह बीमारी कई अंगों को प्रभावित करती है और लक्षणों में अक्सर टीबी जैसी लगती है। यदि सही समय पर उपचार न मिले तो यह जानलेवा भी हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्य से जुड़े लोगों को इसका अधिक खतरा होता है, लेकिन शहरी क्षेत्रों के लोग भी, खासकर डायबिटीज़ से पीड़ित या लगातार शराब का सेवन करने वाले लोग, इससे प्रभावित हो सकते हैं।

एम्स भोपाल के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने पिछले छह वर्षों से मेलीओडोसिस के मामले लगातार पहचाने हैं। अब तक 130 से अधिक रोगियों की पुष्टि हो चुकी है, जो राज्य के 20 से भी ज्यादा जिलों से हैं। यह साबित करता है कि यह रोग अब मध्य प्रदेश में स्थानिक (endemic) हो चुका है। करीब ढाई साल पहले शुरू हुए इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक एम्स भोपाल ने 25 सरकारी और निजी संस्थानों के 50 से ज्यादा माइक्रोबायोलॉजिस्ट और चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया है। इसका सीधा असर देखने को मिला है—अब तक आयोजित प्रशिक्षणों के बाद 6 अलग-अलग संस्थानों से 14 नए मामले सामने आए हैं, जिनमें जीएमसी भोपाल, सागर मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, आईसीएमआर-बीएमएचआरसी, जेके अस्पताल भोपाल, मेदांता अस्पताल इंदौर और बंसल अस्पताल सागर शामिल हैं। इस बार के प्रशिक्षण में एनएससीबीएमसी जबलपुर, एसआरवीएसएमसी शिवपुरी, इंडेक्स मेडिकल कॉलेज इंदौर, आरडीजीएमसी उज्जैन, एमजीएमएमसी इंदौर समेत कई प्रमुख सरकारी और निजी अस्पतालों के क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट शामिल हुए। इस अवसर पर एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) माधवानंद कर ने कहा कि इस तरह के प्रशिक्षण क्षेत्र में संक्रामक रोगों की पहचान को मजबूत बनाते हैं। उन्होंने जोर दिया कि जागरूकता और समय पर पहचान ही इस गंभीर और अक्सर अनदेखी की जाने वाली बीमारी से जीवन बचाने की कुंजी है। एम्स भोपाल के निरंतर प्रयासों से मेलीओडोसिस के खिलाफ लड़ाई और मजबूत हो रही है, जिससे आम जनता को समय पर पहचान और बेहतर इलाज मिल सकेगा।

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