एम्स भोपाल में मध्य भारत की पहली कृत्रिम जबड़ा प्रत्यारोपण सर्जरी सफलतापूर्वक संपन्न, रोगी को मिला नया जीवन

भोपाल: 02 जुलाई 2025
एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह के नेतृत्व में, संस्थान ने चिकित्सा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। एम्स भोपाल में मध्य भारत की पहली कृत्रिम जबड़ा प्रत्यारोपण सर्जरी (Artificial Jaw Replacement Surgery) एक कस्टम-निर्मित टाइटेनियम इम्प्लांट की सहायता से सफलतापूर्वक की गई। यह सर्जरी पूरी तरह से कम्प्यूटर सहायता प्राप्त तकनीक से योजनाबद्ध की गई, जो इस क्षेत्र में रोगी-केंद्रित पुनर्निर्माण सर्जरी की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह सर्जरी एक 62 वर्षीय महिला पर की गई जो मंसौर, मध्य प्रदेश की निवासी हैं। वे लंबे समय से गंभीर जबड़े के दर्द, चेहरे की विकृति, खाने-पीने तथा बोलने में असमर्थता जैसी समस्याओं से पीड़ित थीं। इससे पूर्व वे एक निजी अस्पताल में दो बार पारंपरिक टाइटेनियम प्लेट्स द्वारा जबड़े का पुनर्निर्माण करवा चुकी थीं, जो असफल रही और दोनों बार प्लेट्स टूट गईं। मरीज ने कई अस्पतालों में परामर्श लिया, जहाँ जाँच के उपरांत यह पाया गया कि उनकी स्थिति पारंपरिक उपचार विधियों से ठीक नहीं हो सकती। विभिन्न अस्पतालों में जाँच एवं परामर्श करने के बाद भी मरीज एवं उनके परिजनों को कोई राहत नहीं मिली। तब उन्होंने एम्स भोपाल के ट्रॉमा एवं आपातकालीन विभाग में संपर्क किया।
इसके पश्चात, डॉ. बी. एल. सोनी (मैक्सिलोफेशियल सर्जन) के नेतृत्व में एक बहु-विषयी चिकित्सकीय टीम ने रोगी की स्थिति का गहन मूल्यांकन कर एक नवीन और अनुकूलित समाधान प्रस्तुत किया। इस प्रक्रिया में वर्चुअल सर्जिकल प्लानिंग और सटीक मिलिंग तकनीक का उपयोग किया गया। डॉ. बी. एल. सोनी, जिन्हें कंप्यूटर-सहायता प्राप्त चेहरे के पुनर्निर्माण का एक दशक से अधिक का अनुभव है, उन्होंने रोगी के मेडिकल इमेजिंग और इन-हाउस सॉफ्टवेयर की सहायता से इस इम्प्लांट को डिज़ाइन किया। इस इम्प्लांट को ठोस टाइटेनियम ब्लॉक से मिलिंग प्रक्रिया द्वारा तैयार किया गया, जो पारंपरिक पाउडर मेटल आधारित 3डी प्रिंटेड इम्प्लांट्स की तुलना में अधिक मजबूत और दीर्घकालिक टिकाऊ होता है। डॉ. सोनी ने बताया, “सटीक फिट सुनिश्चित करने के लिए हमने रोगी के जबड़े का 3डी प्रिंटेड मॉडल तैयार किया और उस पर इम्प्लांट की टेस्टिंग की। यह केस अत्यंत जटिल था और प्रत्येक चरण में विशेष सावधानी बरतनी पड़ी।”
यह सर्जरी प्रो. मोहम्मद यूनुस (प्रमुख, ट्रॉमा एवं आपातकालीन चिकित्सा) और डॉ. सौरभ की देखरेख में सफलतापूर्वक की गई, जिसमें डॉ. सोनी और उनकी टीम द्वारा सटीक शल्य चिकित्सा प्रदान किया गया। सर्जरी के बाद रोगी ने उल्लेखनीय सुधार दिखाया और अब वे स्वतंत्र रूप से बोलने और भोजन करने में सक्षम हैं। मरीज के पुत्र ने अपनी भावनाएं साझा करते हुए कहा, “हम एम्स भोपाल के सभी डॉक्टरों के प्रति अत्यंत आभारी हैं। न केवल मेरी माँ, बल्कि पूरा परिवार बहुत प्रसन्न है। हमारे बच्चे सबसे ज्यादा खुश हैं कि अब दादी उन्हें पहले की तरह कहानियाँ सुनाती हैं।” यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत स्तर पर रोगी के लिए एक जीवन परिवर्तनकारी समाधान है, बल्कि यह बहु-विषयी चिकित्सा सहयोग और अत्याधुनिक तकनीक की शक्ति को भी प्रदर्शित करती है।
इस अवसर प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने टीम को बधाई देते हुए कहा, “एम्स भोपाल मिनिमली इनवेसिव एवं तकनीक-सक्षम इलाज के पक्ष में निरंतर कार्य कर रहा है, जिससे न केवल सर्जरी की सटीकता सुनिश्चित हो सके, बल्कि रोगियों की शीघ्र रिकवरी भी संभव हो। यह केस हमारी नवाचारशील सोच और रोगी-केंद्रित देखभाल की मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।” मध्य प्रदेश के जिन मरीजों को पहले जटिल सर्जरी के लिए राज्य के बाहर के उच्च चिकित्सा संस्थानों में रेफर किया जाता था, वे अब ऐसे उपचार एम्स भोपाल में ही प्राप्त कर सकेंगे। यह न केवल एम्स भोपाल की बढ़ती चिकित्सा क्षमता को दर्शाता है, बल्कि संस्थान की उपलब्धियों पर गर्व की भावना भी उत्पन्न करता है। यह चिकित्सा उपलब्धि एम्स भोपाल को अत्याधुनिक मैक्सिलोफेशियल रीकंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्थान के रूप में स्थापित करती है और भारत में अगली पीढ़ी की सर्जिकल तकनीकों के केंद्र के रूप में इसकी भूमिका को और अधिक सुदृढ़ बनाती है।