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साक्ष्य-आधारित दिशानिर्देशों के लिए एम्स भोपाल में मेटा-एनालिसिस पर राष्ट्रीय कार्यशाला

भोपाल: 30 जुलाई 2025

एम्स भोपाल, अपने कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) अजय सिंह के नेतृत्व में शैक्षणिक नवाचार और अनुसंधान उत्कृष्टता के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है। इसी क्रम में, बाल चिकित्सा विभाग द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (भारत सरकार) के सहयोग से तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला “मेटा मास्टरी: सिस्टमैटिक रिव्यू एवं मेटा-एनालिसिस पर कार्यशाला” का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्देश्य प्रारंभिक स्तर के शोधकर्ताओं, चिकित्सकों और स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को वैज्ञानिक विधियों का प्रशिक्षण देना है, ताकि वे भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप उच्च गुणवत्ता वाले, साक्ष्य-आधारित क्लिनिकल दिशानिर्देश तैयार कर सकें। कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्वलन और स्वागत भाषण के साथ हुई, जिसमें बाल चिकित्सा विभाग की विभागाध्यक्ष ने सिस्टमैटिक रिव्यू और मेटा-एनालिसिस को साक्ष्य-आधारित चिकित्सा की आधारशिला बताते हुए इनके महत्व को रेखांकित किया। कार्यक्रम में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. चंचल गोयल ने विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया और तकनीकी संसाधन केंद्र (टीआरसी) पहल की जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि देशभर से केवल 27 संस्थानों को टीआरसी के रूप में चयनित किया गया है, जिसमें एम्स भोपाल का चयन इसकी सशक्त शैक्षणिक और अनुसंधान क्षमता का प्रमाण है। डीन (शैक्षणिक) ने कार्यशाला के प्रतीक चिन्ह की व्याख्या करते हुए बताया कि चिकित्सा क्षेत्र में तेजी से बढ़ती जानकारी के बीच प्रमाणिक साक्ष्य का मूल्यांकन और समेकन अत्यंत आवश्यक हो गया है।

इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने कहा, “भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था की विविधता को देखते हुए ऐसे संरचित, साक्ष्य-आधारित दिशानिर्देशों की आवश्यकता है जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों तक व्यावहारिक रूप से लागू किए जा सकें। ‘मेटा मास्टरी’ जैसी कार्यशालाएं अनुसंधान क्षमताओं को सशक्त करने के साथ-साथ, संसाधनों के प्रभावी उपयोग और गुणवत्ता पूर्ण चिकित्सकीय निर्णयों को भी बढ़ावा देती हैं। हमें ‘वन स्टेट, वन हेल्थ’ जैसी नीतियों से प्रेरणा लेकर ऐसे दिशानिर्देशों को विकसित करना होगा जो हर स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उपयुक्त हों।” टीआरसी के नोडल अधिकारी ने मेटा-एनालिसिस की उपयोगिता के साथ इसकी सीमाओं को भी रेखांकित किया और उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे कम गुणवत्ता वाले अध्ययन कभी-कभी भ्रामक निष्कर्ष दे सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ‘हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग’ भी दी जा रही है, जिससे वे इन विधियों को वास्तविक अनुसंधान में प्रभावी ढंग से लागू कर सकें। यह कार्यशाला भारत में साक्ष्य-आधारित चिकित्सा अनुसंधान और दिशानिर्देश विकास की दिशा में एक ठोस कदम है, जो आने वाले समय में स्वास्थ्य निर्णयों को अधिक वैज्ञानिक, उपयुक्त और प्रभावशाली बनाएगा।

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