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कम उम्र में भी बढ़ रहे हैं कोलोरेक्टल कैंसर के मामले, समय रहते जांच और जागरूकता है बचाव का उपाय

भोपाल: 23 जुलाई 2025

एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रो. (डॉ.) अजय सिंह के नेतृत्व में संस्थान जनस्वास्थ्य से जुड़े उभरते खतरों के प्रति जन-जागरूकता और समय पर निदान एवं उपचार को लगातार बढ़ावा दे रहा है। इसी कड़ी में एम्स भोपाल के विशेषज्ञों ने भारत में कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़ते मामलों, विशेषकर युवाओं में इसके प्रचलन को लेकर चिंता व्यक्त की है। कोलोरेक्टल कैंसर, जो बड़ी आंत (कोलन या रेक्टम) को प्रभावित करता है, पहले केवल पश्चिमी देशों की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब भारत में भी आधुनिक जीवनशैली के कारण इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वैश्विक स्तर पर यह पुरुषों और महिलाओं में तीसरा सबसे आम कैंसर है। भारत में यह हर एक लाख में लगभग 4.4 लोगों को प्रभावित करता है। जोखिम कारकों में 50 वर्ष से अधिक आयु, पुरुष लिंग, पारिवारिक इतिहास, लिंच सिंड्रोम जैसी आनुवंशिक स्थितियां, कम फाइबर युक्त आहार, मोटापा, धूम्रपान, अत्यधिक शराब सेवन और आंत की सूजन संबंधी बीमारियां शामिल हैं।

इंडियन जर्नल ऑफ कैंसर (2021) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 25% नए कोलोरेक्टल कैंसर मरीज 40 वर्ष से कम आयु के थे, जो एक गंभीर संकेत है। शुरुआती चरणों में इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते या थकान, वजन घटना, या एनीमिया के रूप में सामने आते हैं। जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता है, मल त्याग की आदतों में बदलाव, पेट दर्द, गैस बनना और मल में खून आना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। कई बार यह बीमारी टीबी जैसी दिखती है, जिससे सही निदान में देर हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मल में खून आने को बवासीर या फिशर समझकर खुद से दवा शुरू करना खतरनाक हो सकता है। सही समय पर जांच कराने से इलाज की सफलता की संभावना काफी बढ़ जाती है। 45 वर्ष की आयु से स्क्रीनिंग (जैसे कॉलोनोस्कोपी या स्टूल टेस्ट) की सिफारिश की जाती है, और जिनमें पारिवारिक इतिहास हो, उनमें यह और पहले आवश्यक है। उपचार कैंसर के चरण पर निर्भर करता है, जिसमें सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, टार्गेटेड और इम्यूनोथेरेपी शामिल हो सकते हैं। लेप्रोस्कोपिक या रोबोटिक सर्जरी से जल्दी स्वस्थ होने और कम जटिलताओं के लाभ मिलते हैं।

इस बढ़ते स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए, एम्स भोपाल का सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग गैस्ट्रोसर्जरी ओपीडी में प्रत्येक सोमवार को एक समर्पित जीआई ऑन्कोसर्जरी विशेष क्लिनिक संचालित करता है। विभाग इसोफेगस, पेट, पित्ताशय, बाइल डक्ट, अग्न्याशय, लिवर और बड़ी आंत के कैंसर से पीड़ित मरीजों की नियमित रूप से जांच करता है। दुर्भाग्यवश, इनमें से अधिकांश मरीज एडवांस स्टेज में पहुंच चुके होते हैं, जहां इलाज की संभावना अत्यंत कम हो जाती है। विभाग ने कोलोरेक्टल कैंसर की समय पर पहचान के लिए उच्च जोखिम वाले समूहों में एक राष्ट्रीय स्क्रीनिंग कार्यक्रम की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है, क्योंकि भारत में वर्तमान में इसके लिए कोई स्थापित दिशा-निर्देश मौजूद नहीं हैं। कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़ते मामलों और इसके जनस्वास्थ्य पर प्रभाव को रेखांकित करते हुए प्रो. (डॉ.) अजय सिंह ने कहा, “कोलोरेक्टल कैंसर अब सिर्फ वृद्धों तक सीमित नहीं है। युवाओं में इसके बढ़ते मामले चिंताजनक हैं। जनजागरूकता और समय पर जांच ही बचाव के सबसे महत्वपूर्ण उपाय हैं। एम्स भोपाल इस बीमारी की पहचान, उन्नत उपचार और समाज को शिक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है।”

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