टॉप न्यूज़देशभोपालमध्य प्रदेशराज्य

बाल अपराध मुक्त हो भारत : भुवन ऋभु (संस्थापक जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन)

पर्सनल कानूनों की आड़ में जारी बाल विवाह की प्रथा पर रोक लगे और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम सभी धर्मों व संप्रदायों पर समान रूप से लागू हो : भुवन ऋभु

भोपाल: 1 सितम्बर 2025

बाल अपराधों की रोकथाम, बाल अधिकारों के प्रति समाज को जाग्रत करना और भारत को बाल अपराध मुक्त करने का संकल्प लेकर चल रही देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्था है “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन”। जेएफआर ने विगत कई वर्षों में देश में हों रहे बाल अपराधों के प्रति बड़ी ही संवेदनशीलता से कार्य किया है, इस संस्था ने न केवल बाल अपराधों को रोकने का काम किया है बल्कि समाज को बाल अपराध रोकने एवं बाल अधिकारों के प्रति जागृत करने का भी सक्षम प्रयास किया है। इन्हीं प्रयासों को लेकर संस्था के संस्थापक भुवन ऋभु जो कि देश मे अग्रणी बाल अधिकार कार्यकर्ताओं में शुमार हैं उन्होने प्रेस वार्ता के जरिए बताया कि जेआरएफ 250 से भी अधिक सहयोगी संगठनों के साथ दुनिया के सबसे बड़े विधिक हस्तक्षेप अभियानों में गिना जाता है और भारत के 440 संवेदनशील जिलों में काम कर रहा है केवल पिछले दो वर्षों में ही सरकार के सहयोग से जेआरसी ने 300,000 से अधिक बच्चों को बाल विवाह से बचाया है और ट्रैफिकिंग के शिकार पचासी हजार से भी ज्यादा बच्चों को मुक्त कराया है पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से वे दासता के आधुनिक स्वरूपों, बच्चों की ट्रैफिकिंग, बंधुआ मजदूरी, बाल यौन शोषण और बाल विवाह जैसी अमानवीय बुराइ‌यों के खात्मे के लिए बच्चों की सेवा में कानून को उनकी ढाल बनाकर खड़े हैं उनके प्रयासों ने भारत की बाल संरक्षण नीति की दशा व दिशा ही बदल कर दिया है पहले जहां यह केवल कल्याण का विषय माना जाता था वहीं उनके प्रयासों से यह अब न्याय का विषय बन गया है… एक ऐसा विषय जिसे तुरंत कार्रवाई, जवाबदेही और आपराधिक न्याय व्यवस्था से ठोस समाधान की दरकार है। विधायी सुधार और सामुदायिक कार्रवाई के संकल्प के साथ ऋभु ने प्रमुख बाल संरक्षण कानूनों के सृजन व निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभाई है। इनमें संशोधित बाल एवं किशोर श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम, 1986 शामिल है, जिसने 18 वर्ष से कम आयु में बाल श्रम पर रोक लगाई। उनके अनथक संघर्ष ने 2013 में लापता बच्चों पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का मार्ग प्रशस्त किया और भारत में बाल संरक्षण संबंधी संस्थाओं व कानूनों में व्यापक सुधारों को गति दी।

वर्ष 2023 में भुवन ऋभु ने बाल विवाह को बच्चों से बलात्कार के रूप में परिभाषित कर इसकी आपराधिक प्रकृति की ओर दुनिया का ध्यान खींचा उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी जनांदोलन खड़ा किया जिसकी अगुआई महिलाएं, बच्चियां और नागरिक समाज संगठन कर रहे हैं। सिर्फ दो सालों में यह बाल विवाह जैसी समाज में गहरे तक जड़े जमाए बैठी बुराई के खिलाफ नागरिक समाज का सबसे बड़ा जन अभियान बन कर उभरा है। इस राष्ट्रीय आंदोलन का सीधा असर भारत सरकार के बाल विवाह मुक्त भारत अभियान और नेपाल के बाल विवाह मुक्त अभियान के रूप में सामने आया जिन्हें समानांतर रूप से आरंभ किया गया। आज वे चाइल्ड मैरेज फ्री वर्ल्ड अभियान के वैश्विक अगुआ हैं, जो 39 देशों में 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। वर्ष 2024 में, उनकी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी” की जगह “सीसीम (बाल यौन शोषण एवं दुर्व्यवहार सामग्री) शब्द का प्रयोग अनिवार्य किया।

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि बाल अधिकारों की सुरक्षा में मध्य प्रदेश अग्रिम मोर्चे पर है और इस राज्य के पास बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने की राष्ट्रीय लड़ाई के नेतृत्व की पूरी क्षमता व संभावना है।

मध्य प्रदेश की सात करोड़ तीस लाख की आबादी में 40 प्रतिशत हिस्सा बच्चों का है। ऐसे में राज्य के सामने एक बड़ी चुनौती है और इसने निर्णायक कदम उठाए हैं। बाल विवाह, ट्रैफिकिंग और यौन हिंसा की चुनौती से निपटने के लिए सरकार और नागरिक समाज ने साथ मिलकर तेजी से कदम उठाए हैं।

देश के 250 से भी ज्यादा नागरिक संगठनों के नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों के सहयोग से अप्रैल 2023 से अगस्त 2025 के बीच मध्य प्रदेश के 41 जिलों में 36,838 बाल विवाह रुकवाए, ट्रैफिकिंग के शिकार 4,777 बच्चों को मुक्त कराया और यौन शोषण के शिकार 1200 से अधिक पीड़ित बच्चों की मदद की।

नागरिक समाज संगठनों के पुलिस, अधिवक्ताओं, बाल कल्याण समितियों और समुदायों के साथ तालमेल व समन्वय से काम करने के इस अनूठे माडल ने बच्चों की सुरक्षा की राज्य की क्षमता को मजबूती दी है।

मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य था जिसने बच्चियों के साथ बलात्कार के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया था। ऋभु ने कहा कि सरकार को यही संकल्प बाल विवाह के खिलाफ भी दिखाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) एक धर्मनिरपेक्ष कानून है जो बच्चों की सुरक्षा के मकसद से बनाया गया था और इसे हर हाल में धार्मिक विश्वासों व पर्सनल लॉ पर तरजीह मिलनी चाहिए।

हाल ही में कुछ उच्च न्यायालयों के फैसलों जिसमें पीसीएमए पर पर्सनल लॉ को तरजीह दी गई थी, का जिक्र करते हुए भुवन ऋभु ने कहा कि मध्य प्रदेश को अगुआई करते हुए इसे सभी के लिए बाध्यकारी बनाना चाहिए।

भोपाल में सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भुवन ऋभु ने कहा, “सैद्धांतिक रूप से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम किसी भी पर्सनल लॉ, प्रथा या संहिता से ऊपर है। मध्य प्रदेश सरकार को इस पर अमल की अगुआई करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून बगैर किसी समझौते के हर बच्चे की हिफाजत करे।”

भुवन ऋभु वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन से ‘मेडल ऑफ ऑनर’ से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय अधिवक्ता हैं। वे जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के सहयोग से वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन की वैश्विक पहल जस्टिस फॉर चिल्ड्रेन वर्ल्डवाइड (जेसीडब्ल्यू) के भी अध्यक्ष हैं। जेसीडब्ल्यू दुनियाभर के अधिवक्ताओं, जजों और न्यायविदों को एक मंच पर लाता है ताकि कानूनी सुधारों व कानून पर अमल के जरिए बच्चों की सुरक्षा को मजबूती दी जा सके।

बेस्टसेलर किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ के लेखक भुवन ऋभु ने कहा, “बच्चों की वास्तविक सुरक्षा व संरक्षण तभी संभव है जब कानून एक मजबूत निवारक उपाय का काम करे।”

उन्होंने कहा, “अप्रैल 2023 से जुलाई 2025 के बीच महज इन दो सालों में कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ मिलकर जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के कार्यों से यह साबित होता है कि यदि कानून को उसके उद्देश्य और तात्कालिकता के साथ लागू किया जाए तो बच्चे वास्तव में सुरक्षित होंगे। देश में 3,74,000 बाल विवाह रोक कर, ट्रैफिकिंग के शिकार 1,00,000 से अधिक बच्चों को मुक्त करा कर, यौन शोषण के शिकार 34,000 से भी ज्यादा बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा मुहैया कर और 63,000 से भी ज्यादा मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू कर भारत ने यह साबित किया है कि हम एक ऐसा राष्ट्र बन सकते हैं जहां बच्चों के खिलाफ अपराध करके कोई कानून से नहीं बच पाएगा। यहां तक कि साइबर जगत में बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण के 1,000 से अधिक मामले दर्ज कर हमने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि कानून का शासन हर बच्चे की सुरक्षा करेगा और हर जगह करेगा।”

हालांकि मध्य प्रदेश में बाल विवाह की दर 23.1 है जो राष्ट्रीय औसत 23.3 के मुकाबले मामूली कम है लेकिन कुछ जिलों में स्थिति गंभीर है। जैसे राजगढ़ में बाल विवाह की दर 46.0, श्योपुर में 39.5, छतरपुर में 39.2, झाबुआ में 36.5 और आगर मालवा जिले में 35.6 प्रतिशत है। कानून पर सख्ती से अमल के अभाव में बाल विवाह से बच्चियों का पढ़ाई छोड़ना और उनका शोषण व गरीबी के अंतहीन दुष्चक्र में फंसना जारी रहेगा।

मध्य प्रदेश में जेआरसी नेटवर्क के 17 सहयोगी संगठन पिछले दो वर्षों से राज्य के 41 जिलों में काम कर रहे हैं। यह नेटवर्क बाल विवाह, बच्चों की ट्रैफिकिंग, बाल यौन शोषण और बाल श्रम की रोकथाम के लिए जागरूकता के प्रसार और कानूनी हस्तक्षेप उपायों की दोहरी रणनीति पर काम करता है। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन ‘चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ अभियान के सहयोग में भी अग्रिम मोर्चे पर है जिसका लक्ष्य 2030 तक भारत से बाल विवाह का खात्मा है।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (पीसीएमए) 2006 बाल विवाह पर पूरी तरह पाबंदी लगाता है। यह कानून 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की और 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के को बच्चे के तौर परिभाषित करता है। इस कानून के तहत बाल विवाह को प्रोत्साहित करने या उसमें किसी भी तरह का सहयोग करने जैसे बारात में शामिल मेहमानों, हलवाई, सजावट करने वाले, बैंड वाले या घोड़ी वाले पर भी सजा व जुर्माने का प्रावधान है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!